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लेखनी प्रतियोगिता -15-Jun-2022 गजल : ज्वालामुखी के फूल

लोग अपने दिलों में नफरतों का लावा भर रहे हैं 
पत्थर के रूप में ज्वालामुखी के फूल झर रहे हैं 

इंसानियत से बहुत बड़ा बना दिया है मजहब को 
मानव का वेश धर के यहां वहां दानव विचर रहे हैं 

खुद फरियादी, खुद वकील , खुद ही जज बन गए 
हिंसा का ताण्डव कर सड़क पे "इंसाफ" कर रहे हैं 

अपने कर्मों से जन्नत को जहन्नुम बना के रख दिया 
ऐसे लोग भी अमन पसंद होने का दम भर रहे हैं 

मजहब के कारोबारी अब तो छा गये हैं बाजार में 
छोटे बच्चों के माध्यम से जहर की खेती कर रहे हैं 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
15.6.22 


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14 Comments

Shrishti pandey

16-Jun-2022 10:32 AM

Nice

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Punam verma

16-Jun-2022 10:29 AM

Nice

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Abhinav ji

16-Jun-2022 07:41 AM

Very nice👍

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